संस्थान परिचय पृष्ठ भूमि:
भारत की पशुधन संख्या अत्यंत विशाल है देश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल विश्व के संपूर्ण भू-भाग का मात्र 2 प्रतिशत है जबकि यहॉं पशुओं की संख्या विश्व की संख्या का 15 प्रतिशत है देश में पशुओं की संख्या 450 मिलियन के लगभग है जिसमें प्रतिवर्ष 10 लाख पशु के हिसाब से बढ़ोत्तरी हो रही है। प्रारंभ से ही पशुधन का हमारे देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हमारे देष में पषुओं के लिए आवष्यक पौष्टिक आहार की हमेषा से ही कमी रही है यहां पषु आहार की स्थिति विदेषों से काफी विपरीत है। यहां विष्व की कुल भाग की 2 प्रतिषत भूमि उपलब्ध है जिसपर विष्व की 14 प्रतिषत आबादी बसती है। आज देष में लगभग 3.84 प्रतिषत भूमि में चारा उत्पादन का कार्य किया जाता है। दसवीं योजना में चारे की 22 प्रतिशत की कमी आंकी गई। हमारे देष की कुल जोत के लगभग 4 प्रतिषत क्षेत्रफल में ही चारा उगाया जाता है, जबकि 12 से 16 प्रतिषत क्षेत्रफल में चारा उगाने की आवष्यकता है। विभिन्न कारणों में से हमारे पषुओं द्वारा कम उत्पादन देने का मुख्य कारण उन्हें आवष्यक व पौष्टिक आहार का न मिलना रहा है, यदि हम अपनी आवष्यकता को बढ़ाकर चारा उगाना चाहते हैं तो हमें भूमि के उक्त 12-16 प्रतिषत भाग पर चारे की फसलें उगानी होंगी। शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पशुधन की बाहुल्यता है यहां बंजर एवं लवणीय भूमि में चारा उगा कर 90 मिलियन टन घास की पैदावार की जा सकती है। इसके साथ ही बहुवर्षीय घास लगाकर तथा फसलों के अवशेष के प्रसंस्करण से तैयार चारा कमीं वाले प्रदेशों में भेजा जा सकता है । हमारे पास संसाधन सीमित है किन्तु इन्हीं सीमित संसाधनों में ही पशुओं को भरपेट गुणवत्तायुक्त पौष्टिक चारा उपलब्ध करवाने में आने वाली कठिनाइयों का हल खोजना है। इन्ही बातों को ध्यान में रखतें हुए चरागाह एवं चारे की उन्नत प्रजातियों के विकास और उनका सस्य प्रबंधन एवं अनुरक्षण हेतु भारत सरकार ने वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की ऐतिहासिक नगरी झांसी में भारत सरकार ने भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान की सन् 1962 में स्थापना की। झांसी में इस संस्थान की स्थापना करने का मुख्य कारण यहॉं सभी प्रमुख घासों का पाया जाना भी था। तत्पश्चात् सन् 1966 में इसका प्रशासनिक नियंत्रण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली को सौंपा गया। संस्थान ने अपने स्थापना काल से ही चारा उत्पादन व उपयोग के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान कर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका प्रचार-प्रसार करने और समन्वित विकास करने में अहम् भूमिका निभायी है। इसके अतिरिक्त संस्थान में अखिल भारतीय चारा समन्वित परियोजना का संचालन भी किया जा रहा है। साथ ही संस्थान के उद्देष्यों की पूर्ति के लिए देष विदेष के सहयोग से अन्य परियोजनाएं सफलतापूर्वक संचालित की जा रहीं हैं। जलवायु तथा कृषि की क्षेत्रीय आवष्यकताओं को ध्यान में रखकर देष के अन्य भागों में इस संस्थान के तीन क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए गए हैं। जोकि अविकानगर (राजस्थान), धारवाड़ (कर्नाटक) एवं श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर) में स्थित हैं।
भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी (उ.प्र.): एक संक्षिप्त परिचय
पृष्ठ भूमि:
वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की ऐतिहासिक नगरी झांसी में भारत सरकार ने भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान की सन् 1962 में स्थापना की।झांसी में इस संस्थान की स्थापना करने का मुख्य कारण यहॉं सभी प्रमुख घासों का पाया जाना भी था। तत्पष्चात् सन् 1966 में इसका प्रषासनिक नियंत्रण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली को सौंपा गया। संस्थान ने अपने स्थापना काल से ही चारा उत्पादन व उपयोग के विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान कर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका प्रचार-प्रसार करने और समन्वित विकास करने में अहम् भूमिका निभायी है। इसके अतिरिक्त संस्थान में अखिल भारतीय चारा समन्वित परियोजना का संचालन भी किया जा रहा है। साथ ही संस्थान के उद्दश्ेयों की पूर्ति के लिए देष विदेष के सहयोग से अन्य परियोजनाएं सफलतापूर्वक संचालित की जा रहीं हैं। जलवायु तथा कृषि की क्षेत्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर देष के अन्य भागों में इस संस्थान के तीन क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए गए हैं। जोकि अविकानगर (राजस्थान), धारवाड़ (कर्नाटक) एवं पालमपुर (हिमांचल प्रदेष) में स्थित हैं।
अधिदेश (मेनडेट)
संस्थान के मुख्य अधिदेष निम्नवत् हैं:
- चारा फसलों के आनुवंषिक संसाधनों का संकलन, संवर्धन, संग्रहण एवं उन्नत किस्मों
का विकास।
- चारा फसलों एवं चरागाहों के विकास, उत्पादन एवं उपभोग पर आधारभूत तथा योजनाबद्ध
अनुसंधान।
- चारा फसलों एवं चरागाहों पर होने वाले अनुसंधान कार्यों का समन्वयन एवं संकलन।
- चारा फसलों एवं चरागाहों के क्षेत्र में विषेषज्ञता एवं सलाह उपलब्ध कराना।
- पशुपालन व्यवसाय के लिए मानव संसाधन का विकास एवं तकनीकी स्थानान्तरण ।
संगठन:
संस्थान परिवार में 145 वैज्ञानिक, 128 तकनीकी, 70 प्रशासनिक एवं 125 सहयोगी श्रेणी के पद स्वीकृत हैं। जिसमें देष के विभिन्न राज्यों के निवासी वैज्ञानिक, तकनीकी एवं प्रशासनिक पदों पर कार्यरत होकर अपने कार्य को तत्परता तथा लगन से निष्पादन कर रहे हैं। संस्थान अपने गतिषील उद्देष्यों की पूर्ति हेतु निम्नलिखित विभागों/अनुभागों एवं इकाइयों में विभाजित है।
अनुसंधान विभाग:
1. फसल सुधार, 2. फसल उत्पादन, 3. चरागाह एवं वन चरागाह प्रबंधन, 4. पादप पशु संबंध, 5. बीज तकनीकी 6. फार्म मशीनरी एवं कटनोत्तर तकीनीकी, 7. सामाजिक विज्ञान
एवं चारा परियोजना समन्वयन
इकाई
केन्द्रीय अनुभाग/इकाई:
1.स्थापना 2.संपरीक्षा एवं लेखा 3. बीजक एवं रोकड़ 4. सम्पदा, 5. भंडार, 6. राजभााषा 7. मुद्रणालय 8. सुरक्षा, 9. पुस्तकालय 10. वाहन 11. पी.एम.ई. 12. मानव संसाधन विकास 13. प्रक्षेत्र 14. ए.के.एम.यू. 15. फोसू एवं 16. चिकित्सा इकाई।
इसके अतिरिक्त संस्थान की गतिविधियों को सही दिशा एवं मार्गदर्शन हेतु शोध सलाहकार समिति, संस्थान के निदेषक की अध्यक्षता में एक प्रबंध समिति गठित है जिसमें कुछ संकाय सदस्य एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ संस्थानों तथा राज्य सरकारों के कुछ वरिष्ठ अधिकारी इस समिति के सदस्य हैं। साथ ही अन्य सलाहकार समितियां यथा प्रशिक्षण कार्यक्रम समिति, पुस्तकालय समिति, परिसर विकास समिति, प्रेस प्रचार एवं प्रकाषन समिति, राजभाषा कार्यान्वयन समिति इत्यादि भी गठित हैं। जिससे कि संस्थान के कार्यक्रमों एवं गतिविधियों में प्रगति की समीक्षा कर आशातीत सुधार लाया जा सके।
सुविधाएं:
संस्थान सूचना प्रबंध एवं आंकडे विश्लेषण के लिए इंटरनेट व ई-मेल, लोकल एरिया नेटवर्क से संबद्ध मल्टीमीडिया युक्त पर्सनल कम्प्यूटर्स, नेटवर्क से जुड़ी इरिक्स एवं यूनिक सेवाएं, इरनेट के माध्यम से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की कनेक्क्टिविटी , लगभग 10897 पुस्तकों एवं वर्ष भर देष विदेष से प्राप्त अनेक पत्र-पत्रिकाओं तथा शोधरत छात्रों को पुस्तकालय परामर्श की उपलब्ध सुविधायुक्त सुसज्जित पुस्तकालय, हिन्दी/अंग्रेजी की छपाई हेतु मुद्रणालय, छायांकन कक्ष, आधुनिक सुविधायुक्त प्रोजेक्टर, बहुसुविधायुक्त फोटो स्टेट मशीन, कृषि तकनीकी प्रदर्षन खंड, अन्तः संचार टेलीफोन प्रणाली से जुडे सभी विभाग/अनुभाग इत्यादि विषेष आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित हैं। संस्थान 535 हेक्टेयर के विशाल परिसर में विभिन्न प्रकार यथा-राकड, परवा, काबर भूमि युक्त अनुसंधान प्रक्षेत्र,व्यवस्थित है इसके अंतर्गत पूर्णतया विकसित प्रषासनिक भवन, सुसज्जित प्रयोगषालाएं जिसमें जी.आई.एस. एवं उपग्रह सुदूर संवेदी प्रयोगषाला तथा वायोटेक्नॉलोजी प्रयोगशाला विशेष है, स्वागत कक्ष, विश्राम कक्ष, संग्रहालय, चिकित्सा केन्द्र, प्राथमिक पाठषाला, आवासीय परिसर जिसमें 172 विभिन्न श्रेणियों के सभी सुविधायुक्त आवास, अतिथिगृह जिसमें 3 वातानुकूलित कमरे, वैज्ञानिक आवास में 11 कमरे एवं पी.जी. हॅास्टल में 25 कमरे हैं। साथ ही पषुधन परिसर में 243 जरसी, 30 थारपारकर गाय, 70 मुर्रा,114 भदावरी भैंस,114 जालौनी भेड़, 215 बुन्देलखंडी तथा 50 बरबरी बकरी शोध के लिए रखी गईं हैं। साथ ही नवनिर्मित राममढ़ी जलागम अत्यंत आकर्षक है ।
इसके अतिरिक्त संस्थान के विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन हेतु सभी सुविधाओं से युक्त प्रषिक्षण कक्ष, वातानुकूलित समिति कक्ष एवं सम्मेलन कक्ष एवं प्रेक्षागृह है। मुख्य भवन के सामने सुन्दर लॉन है। उपर्युक्त सब की छटा आगंतुकों का मन मोह लेती है।
अंतर्राष्ट्रीय सम्पर्क:
अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में संस्थान विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग में भी कार्य कर रहा है।
कार्यक्रम एवं गतिविधियां:
संस्थान विभिन्न कृषि पारिस्थितिकी अंचल एवं फसल पद्धति के लिए उपयुक्त चारा फसलों की नई-नई प्रजातियों का विकास तथा सघन चारा उत्पादन पद्धतियां, अन्न चारा उत्पादन पद्धति, कृषि वन चरागाह एवं कृषि वानिकी पद्धतियों द्वारा अधिकाधिक चारा प्राप्त करने के लिए अनुसंधान कार्य करके अपनी तकनीकों को किसानों तक लगातार पहुंचा रहा है। संस्थान कम लागत वाले कृषि यंत्रों को भी विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इसके साथ ही किसानों को तकनीकियों की जानकारी देने हेतु संस्थान परिसर में किसान मेला, संगोष्ठी, पशुधन दिवस एवं शोध यात्राओं का आयोजन किया जाता है। संस्थान के वैज्ञानिक देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर गांवों में नयी तकनीकों का प्रदर्शन करते हैं और किसानों को नमूना स्वरूप विभिन्न चारा फसलों के बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। संस्थान के मानव संसाधन विकास अनुभाग द्वारा वर्ष भर हिन्दी/अंगेजी एवं मिली जुली भाषा में विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं। दूरदर्षन/आकाशवाणी के माध्यम से भी विभिन्न विषयों पर किसानों को देष की राजभाषा हिंदी में जानकारी देने हेतु वैज्ञानिकों द्वारा वार्ता प्रसारित की जाती है। इसी क्रम में कृषि से जुड़ी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञनिकों के लेख आदि प्रकाषित होते रहते हैं।
संस्थान के प्रकाशन:
यह संस्थान अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों तथा चारा उत्पादन तकनीकी को सरल व लोकप्रिय राजभाषा हिंदी के माध्यम से किसानों एवं पषुपालकों तक पहुँचा रहा है। साथ ही समय-समय पर संस्थान में राजभाषा हिंदी के माध्यम से वैज्ञानिक संगोष्ठियां व अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहते हैं। राजभाषा हिंदी के माध्यम से आयोजित संगोष्ठी व प्रकाशित साहित्य निम्नवत है:
1. 1991, चारा उत्पादन एवं उपयोग- नई दिशाएं पर आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी का कार्यवृत्त
2.1991, भारत के चरागाह एवं चारा फसलें पर प्रकाषित पुस्तक (संपादकः डा पंजाब सिंह)
3. 1993, बुन्देल खण्ड में बारानी खेती, चारा उत्पादन पर एक दिवसीय संगोष्ठी का कार्यवृत्त
4. 1995, चारा फसलों में बीजोत्पादन (लेखक: डा राघवेन्द्र पाल सिंह)
5. 1998, चारा अनुसंधान एवं पशुुधन विकास के नये आयाम पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी पर प्रकाशित पुस्तक
6. 2004, चरागाह व चारा अनुसंधान (1964-2002 तक हिंदी में प्रकाषित लेखों की सार सहित
संदर्भिका) संकलन व संपादनकर्ता: श्री केशव देव, सहायक निदेषक (रा.भा.)
7. 2005,चारा एवं पशुधन उत्पादनः वर्तमान एवं भविष्य संपादक गैरहरि पैलान एवं प्रेमषंकर पाठक
8. 1999. से नियमित चातुर्माष्य चारा पत्रिका का प्रकाषन ।
संस्थान एक दृष्टि में
2.1 लक्ष्य/कार्य
सामाजिक एवं आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति को ध्यान में रखकर पषुधन उत्पादकता
और चारे की गुणवत्ता में वृद्धि हेतु तकनीकी प्रचार-प्रसार एवं विकास।
2.2 दृष्टि/अवलोकन
पशुधन के उपयोग में पारिस्थितिकी के अनुकूल चारे एवं दाने की पूर्ति हेतु प्रजातियों का
विकास, उत्पादन,संसाधन एवं अधिकतम उत्पादन हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग।
2.3 अधिदेष
- चारा फसलों के आनुवंषिक संसाधनों का संकलन, संवर्धन, संग्रहण एवं उन्नत किस्मों का विकास।
- चारा फसलों एवं चरागाहों के विकास, उत्पादन एवं उपभोग पर आधारभूत तथा योजनाबद्ध अनुसंधान।
- चारा फसलों एवं चरागाहों पर होने वाले अनुसंधान कार्यों का समन्वयन एवं संकलन।
- चारा फसलों एवं चरागाहों के क्षेत्र में विषेषज्ञता एवं सलाह उपलब्ध कराना।
- मानव संसाधन का विकास एवं तकनीकी स्थानान्तरण ।
2.4 अखिल भारतीय चारा फसल समन्वित अनुसंधान परियोजना
- विभिन्न पारिस्थितिकी दषाओं में उचित प्रजातियों को पहिचानने और उत्पादन तकनीक के बहुउद्देषीय परीक्षण कार्यक्रमों का राष्ट्रीय स्तर पर समन्वयन ।
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संस्थान की राजभाषा की गतिविधियां:
संस्थान में वर्तमान में अधिकारियों/कर्मचारियों की कुल संख्या 314 है। जिनमें 81 वैज्ञानिक, 94 तकनीकी, 41 प्रषासनिक, 01 आग्जिलियॅरि और 97 सहयोगी श्रेणी के अधिकारी/कर्मचारी कार्यरत हैं इनमें से 80 प्रतिषत से अधिक को हिंदी में प्रवीणता/कार्यसाधक ज्ञान होने के कारण संस्थान को राजभाषा अधिनियम के नियम 10(4) के अधिसूचित कार्यालय घोषित किया गया है। संस्थान में राजभाषा की प्रगति निम्नवत है:
1. संस्थान अधिसूचित कार्यालय होने के कारण हिंदी में प्रवीणता/कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त अधिकारियों/कर्मचारियों को नियम 8(4) के तहत हिंदी में कार्य करने के लिए व्यक्तिषः आदेष जारी किए गए।
2. संस्थान में राजभाषा नियम -5 के तहत हिंदी में प्राप्त पत्र पत्रों का अनिवार्य रूप से हिंदी में ही उत्तर दिया जाता है। साथ ही अब हिंदी पत्राचार का निर्धारित लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों के उत्तर हिंदी में देने का प्रयास जारी है।
3. राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) के पालनार्थ इसके अंतर्गत आने वाले कागजात द्विभाषी/हिंदी में जारी किए जा रहे हैं।
4. अधिकारियों/कर्मचारियों को हिंदी में काम करने में सुविधा हेतु संस्थान के राजभाषा अनुभाग द्वारा केवल अंग्रेजी में प्रयोग लाए जा रहे फार्मों/कार्यालय आदेषों यथा-अर्जित अवकाष आवेदन एवं उसका स्वीकृति आदेष, कार्यग्रहण प्रतिवेदन, आकस्मिक/प्रतिबंधित अवकाष आवेदन, दौरा अग्रिम आवेदन, चिकित्सा व्यय प्रतिपूर्ति आवेदन,चिकित्सक का अस्वस्थता व स्वस्थता का प्रमाण पत्र ,सामान्य भविष्य निधि का आवेदन एवं उससे संबंधित स्वीकृुति आदेष, प्रषासनिक/तकनीकी कार्मिकों के प्रोन्नति से संबंधित कार्यालय आदेष,त्योहार अग्रिम का आवेदन,मोटर साईकिल,कार एवं कम्प्यूटर अग्रिम का आवेदन,चल-अचल संपत्ति के लेन देन संबंधी आवेदन, भंडार से सामग्री क्रय करने संबंधी आवेदन, भंडार की एस.आर.एन. ,रोकड़िया द्वारा धनराषि जमा करने वाली रसीद बुक, दुग्ध वितरण कूपन, अग्रदाय(इम्प्रेस्ट) समायोजन फार्म, संपरीक्षा एवं लेखा विभाग के प्रयोग में आने वाले कार्यालय आदेषों के प्रारूप, अंतिम समायोजन बिल, डिमांड नोट, आकस्मिक अग्रिम समायोजन संबंधी आवेदन एवं वाहन मांग पत्र, वैज्ञनिकों के अनुसंधान लेख का अनुमोदनार्थ प्रपत्र एवं कार्यषाला/संगोष्ठी आदि में प्रस्तुत किए जाने वाले लेखों के अनुमोदनार्थ प्रपत्र इत्यादि को द्विभाषी/हिन्दी में करने के उपरांत उनको पर्याप्त मात्रा में छपाया गया है तथा उक्त को संकलित कर पुस्तिका का रूप देकर संस्थान के सभी विभागों/अनुभागों/इकाइयों में सुलभ संदर्भ के लिए वितरित किए गये।
5. राजभाषा 1976 के नियम 11 के तहत एक अभियान चलाकर संस्थान के सभी विभागों/अनुभागों /इकाइयों के प्रयोग में आने वाली रबड़ की मोहरों को द्विभाषी तैयार करवा लिया गया है। इसी क्रम में सभी विभागों/अनुभागों/इकाइयों के साइन बोर्ड एवं अधिकारियों के नाम पट्टिकाएं स्टील प्लेट में द्विभाषी तैयार करवाई गईं हैं जो एकरूपता की दृष्टि से बहुत ही सुंदर प्रतीत होते हैं। इसी प्रकार संस्थान के प्रक्षेत्र में चारा, घासों के नामों व विभागों के नामों के साइन बोर्ड भी द्विभाषी रूप में तैयार करवा लिए गए हैं।
6. अधिकारियों/कर्मचारियों को हिंदी में टिप्पणी आदि में सहायता हेतु फाइल कवरों के भीतर अंगेजी-हिंदी के वाक्यांष को छपवाया गया।
7. संस्थान में राजभाषा विभाग द्वारा जारी प्रोत्साहन योजनाएं लागू की गईं है जिसके तहत भाग लेने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों को पुरस्कृत किया जाता है।
8. संस्थान में केन्द्रीय सचिवालय हिंदी परिषद, नई दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित हिंदी की विभिन्न प्रतियोगिताएं यथा-हिंदी की मसौदा एवं टिप्पण लेखन, हिंदी टंकण, निबंध, प्रतियोगिताओं को आयोजित की जाती है।
9. राजभाषा विभाग के आदेशानुसार 14 सितम्बर से संस्थान में अधिकारियों/कर्मचारियों के उत्साहवधर्न व हिंदी के प्रति जागरूकता लाने के उद्देष्य से सुविधानुसार हिंदी सप्ताह/हिंदी पखवाड़ा/चेतना मास मनाया जाता है। उसमें उत्साहवर्धक वातावरण पैदा करने हेतु अधिकारियों/कर्मचारियों की के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं यथा- हिंदी में मसौदा एवं टिप्पण लेखन, हिंदी टंकण, निबंध, हिंदी में मौलिक लेखन, कविता पाठ/भाषण इत्यादि प्रतियोगिताओं को आयोजित किया जाता है। उक्त प्रतियोगिताओं में विजयी प्रतियोगियों को स्मृति चिन्ह व प्रषस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया जाता है।
10. संस्थान से किसानों व जन सामान्य को संस्थान की वैज्ञानिक/तकनीकी जानकारी देने हेतु हिन्दी में एक चातुर्माष्य चारा पत्रिका भी प्रकाषित की जा रही है। जो बुंदेलखंड के अलावा देष के विभिन्न प्रान्तों में किसानों, पषुपालाकों एवं इनसे संबंधित कार्यालयों को बहुत ही उपयोगी सावित हो रही है। इस प्रकार यह संस्थान अपने तकनीकी स्थानान्तरण के कार्यक्रम को उच्च प्राथमिकता के आधार पर राजभाषा हिंदी के माध्यम से निष्पादित करने हेतु वचनवद्ध है।
11. संस्थान को सर्वाधिक कार्य हिंदी में करने पर नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति द्वारा चल बैजन्ती शील्ड से पूर्व में सम्मानित भी किया जा चुका है।